भितिहरवा स्कूल : गांधी ने खोला, कस्तूरबा ने पढ़ाया, फिर भी मान्यता नहीं

महात्मा गांधी का 'कर्मक्षेत्र' भले ही चंपारण को माना जाता है, मगर कहा जाता है कि गांधी ने अपने कर्मक्षेत्र के केंद्र में भितिहरवा गांव को रखा था। आज भी अगर आपको गांधी को समझना है तो भितिहरवा आना होगा। गांधी चंपारण पहुंचने के बाद सबसे पिछड़े गांव भितिहरवा गए थे और वहां उन्होंने सबसे अधिक जोर शिक्षा, स्वच्छता व स्वास्थ्य पर दिया था। गांधी ने लोगों को शिक्षित करने के लिए स्कूल खोला था और उसमें कस्तूरबा गांधी ने भी पढ़ाया था। आज भी पश्चिम चंपारण जिले में 'भितिहरवा गांधी आश्रम' के आस-पास के ग्रामीण इस स्कूल की देखरेख कर गांधी और कस्तूरबा की निशानी को संजोए हुए हैं। 27 April, 1917 को महात्मा गांधी मोतिहारी से नरकटियागंज आए थे और फिर पैदल ही शिकारपुर और मुरलीभहरवा होकर भितिहरवा गांव पहुंचे थे।

गांधी किसानों की दुर्दशा के बारे में सुनकर चंपारण पहुंचे थे। किसान उत्पीडऩ के खिलाफ उन्होंने सत्याग्रह शुरू किया था। उसी दौरान भितिहरवा गांव में स्कूल खोलने का विचार उनके मन में आया था। उनका मानना था कि लोग अशिक्षा के कारण ही अत्याचार सहने को विवश हैं। उन्होंने गांव के किसानों से स्कूल के लिए थोड़ी सी जमीन मांगी थी। जाने-माने गांधीवादी एस$ एन$ सुब्बाराव कहते हैं, गांधीजी तब ब्रज किशोर बाबू, रामनवमी बाबू, अवधेश प्रसाद सिंह तथा विंध्यवासिनी बाबू के साथ राजकुमार शुक्ल के घर पहुंचे। वहां भितिहरवा में किसानों की समस्या सुनने के दौरान उन्होंने पाठशाला स्थापना की इच्छा जाहिर की।

बेलवा कोठी के निलहे प्रबंधकों के डर से गांव का कोई भी किसान उन्हें जमीन देने को तैयार नहीं हुआ। 16 नवंबर को बापू फिर भितिहरवा आए और उनके आग्रह पर भितिहरवा मठ के बाबा राम नारायण दास ने पाठशाला बनाने के लिए जमीन दे दी। चार दिन के अंदर लोगों ने पाठशाला के लिए बांस-फूस का घर और बापू के रहने के लिए एक कुटिया बना दी थी। तीन-चार दिन रहने के बाद 28 नवंबर को बापू यहां दोबारा आए। इस बार उनके साथ उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी भी थीं।

स्कूल में लगवा दी थी आग
कस्तूरबा ने पाठशाला में बच्चों को पढ़ाने का सारा दारोमदार अपने सिर ले लिया। पहली बार इस पाठशाला में इलाके के बारह वर्ष से कम उम्र के 80 बच्चों का नामांकन किया गया। इस पाठशाला में कस्तूरबा के अलावा महाराष्ट्र के सदाशिव लक्ष्मण सोमन, बालकृष्ण योगेश्वर और डॉ$ शंकर देव ने शिक्षक के रूप में कार्य किया। इन शिक्षकों के अलावा राजकुमार शुक्ल, संत राउत तथा प्रह्लाद भगत भी बच्चों को पढ़ाने में सहयोग देते थे। भितिहरवा के स्कूल में बच्चों की पढ़ाई शुरू होने की जानकारी मिलने के बाद बेलवा कोठी के प्रबंधकों ने बापू की कुटी व पाठशाला में आग तक लगवा दी। इसके बाद स्थानीय लोगों ने स्कूल का निर्माण दोबारा ईंट से करवा दी। स्कूल और कुटी दोबारा बनकर तैयार हो गई। आजादी मिलने के साथ ही इस आश्रम से पाठशाला को अलग कर दिया गया।

नहीं मिटने दिया परंपरा को
सुब्बाराव कहते हैं कि इसकी चर्चा गांधी ने अपनी आत्मकथा में भी की है। उस दौरान कस्तूरबा ने महिला शिक्षण का काम गांधीजी के चंपारण से चले जाने के बाद भी छह महीने तक जारी रखा था। कस्तूरबा के प्रयत्नों को देखकर ग्रामीण इतने प्रभावित हुए कि उनकी स्मृति को बनाए रखने के लिए उनके द्वारा शुरू की गई परंपरा को आज तक मिटने नहीं दिया। स्थानीय लोग बताते हैं कि बीच के दिनों में यहां कोई स्कूल नहीं था, लेकिन फिर से उस परंपरा को समृद्ध करने में यहां के लोग आज भी जुटे हुए हैं।

सौ साल पहले 'बेटी पढ़ाओ' अभियान शुरू किया था

स्थानीय लोग बताते हैं कि पश्चिम चंपारण के जिला मुख्यालय बेतिया से करीब 25 किलोमीटर दूर भितिहरवा स्थित गांधी आश्रम के आस-पास के दर्जनों गावों की लड़कियों की शिक्षा के लिए कोई स्कूल नहीं था। किसानों की आर्थिक स्थिति इतनी बेहतर नहीं थी कि वे अपनी बेटियों को पढऩे के लिए बेतिया या नरकटियागंज भेज सकें। उनकी इस विवशता को महात्मा गांधी और कस्तूरबा गांधी ने समझा। उन्होंने यहां सौ साल पहले 'बेटी पढ़ाओ' अभियान शुरू किया था। स्थानीय ग्रामीणों ने स्कूल की स्थापना के लिए अपनी जमीन दे दी थी। बाद में इस स्कूल को गल्र्स हाईस्कूल बना दिया गया और नाम रखा गया कस्तूरबा कन्या उच्च माध्यमिक विद्यालय, जो आज भी चल रहा है।

अभी तक नहीं मिली मान्यता
इस स्कूल के सचिव दिनेश प्रसाद यादव ने बताया कि ग्रामीणों के जमीन देने के बावजूद स्कूल के भवन के लिए कहीं से जब कोई राशि नहीं मिली, तब ग्रामीणों ने आपसी आर्थिक सहयोग से स्कूल के भवन का निर्माण कराया। उन्होंने बताया कि स्थानीय पढ़े-लिखे युवक दीपेंद्र बाजपेयी के नेतृत्व में इस स्कूल में नि:शुल्क अध्यापन शुरू कर दिया। इसके बाद स्कूल संचालन के लिए एक समिति बनाई गई। सचिव ने कहा कि इन लड़कियों को शिक्षा तो दे दी जाती है, मगर उन्हें सरकार की योजना के तहत दी जाने वाली अन्य सुविधाएं नहीं मिलतीं। इन छात्राओं के साथ सबसे बड़ी समस्या इनकी परीक्षा की है। यह समस्या इसलिए है कि इस स्कूल को अभी तक सरकारी मान्यता नहीं मिली है।



from Patrika : India's Leading Hindi News Portal https://ift.tt/2nMBAzB

Comments

Popular posts from this blog

AIIMS NORCET Result 2020: नर्सिंग ऑफिसर भर्ती परीक्षा के परिणाम जारी, यहां से करें चेक

SSC MTS Tier -1 Result 2019: एसएससी एमटीएस रिजल्ट 5 नवंबर को होंगे जारी, यहां पढ़ें

Sainik School Admission 2021-22: सैनिक स्कूल प्रवेश परीक्षा के लिए आवेदन प्रक्रिया शुरू, जानें पात्रता सहित पूरी डिटेल्स