आग से झुलसे बच्चे सिखा रहे जीवन जीने की कला

हादसे हमारी जिंदगी का अनचाहा सच हैं लेकिन कई बार ये हमारी जिंदगी बदल देते हैं। मुश्किल ये है कि कठिन समय में जब हादसों के शिकार लोगों को सबसे ज्यादा पॉजिटिव रेस्पॉन्स की जरूरत होती है उन्हें ‘हेल्पिंग हैंड’ नहीं मिल पाता। ऐसी ही कहानी है दाना कॉस्का की। जब आठ साल की थीं तो घर में आग लगी थी। इसमें उनका चेहरा, गर्दन और बांह सहित 18 फीसदी शरीर झुलस गया था। इसके बाद ठीक होकर फिर अपने स्कूल पहुंची तो दोस्तों ने उनके साथ दुव्र्यवहार किया और अकेला छोड़ दिया। इससे वे भीतर तक टूट गईं। एक्रॉन, ओहियो स्थित हॉस्पिटल की नर्स ने उन्हें पास ही लगने वाले एक खास कैम्प में जाने की सलाह दी, जो हादसों में झुलसे बच्चों के लिए ही था। यहां उन्हें अपने जैसे लोग मिले, साथ ही फिर से जीने की प्रेरणा भी।

किस तरह का कैम्प है
1980 से बर्न्ड चिल्ड्रेन-बर्न कैंप के जरिए एल्यूमिनियम कैन्स संस्था ऐसे बच्चों की हेल्प कर रही है जो किसी आगजनी में झुलस गए। वो एक सप्ताह का शिविर आयोजित करते हैं जहां हादसों का सामना कर चुके बच्चों को मोटिवेट किया जाता है। एक्रॉन चिल्डे्रंस हॉस्पिटल की बर्न सेंटर एजूकेशन को-ऑर्डिनेटर बेकी मुंडी ने कहा कि यहां ये बच्चे समाज के साथ तालमेल बिठाने का प्रयास करते हैं। हम बस इन्हें सहज रहना सिखाते हैं।

फायरफाइटर्स भी साथी
यह कैम्प सिर्फ बर्न सर्वाइवर्स के लिए नहीं है। कैम्प के दौरान ‘फायर ट्रक डे’ मनाया जाता है। इसमें दर्जनों स्थानीय अग्निशमन दल के कर्मचारियों के अलावा कैम्प से जुड़े पूर्व सदस्य, डॉक्टर्स, नर्स और फैमिली के लोग भी होते हैं। इनके बीच एक अटूट रिश्ता बन जाता है। सेवानिवृत्त फायर फाइटर मार्क हार्पर के मुताबिक इन बच्चों को कैंप में फिर से हंसते-खेलते देखना एक सुखद अनुभव है।



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