कुरूक्षेत्र यूनिवर्सिटी की सौ करोड रूपए की केन्द्रीय सहायता पर संकट मंडराया
निर्धारित मानकों के अनुसार अध्यापकों की कमी के कारण हरियाणा की कुरूक्षेत्र यूनिवर्सिटी को केन्द्र सरकार से मिलने वाली सौ करोड रूपए की सहायता पर खतरा मंडरा गया है। जानकार सूत्रों के अनुसार पिछले मई में केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा वित्तीय सहायता के लिए तय किए गए मानकों के अनुसार अध्यापन विभागों में नियमित अध्यापक सत्तर फीसदी होना चाहिए। यूनिवर्सिटी के विभिन्न विभागों में औसतन 35 फीसदी तक अध्यापकों की कमी है।
कुछ ही विभागों में स्वीकृत पदों के 70 फीसदी तक अध्यापक हैं। इस कारण यूनिवर्सिटी को केन्द्र से मिलने वाली मदद खतरे में है। यूनिवर्सिटी में अध्यापकों की नियुक्ति एक बडा मुद्दा है। पिछले बीस साल के दौरान राज्य सरकारों ने अध्यापकों की नियुक्ति पर कोई ध्यान नहीं दिया।
यूजीसी ने एक बार अध्यापकों की भर्ती प्रक्रिया रोक दी थी। पहले चरण में अध्यापकों के 132 पदों को भरने की प्रक्रिया प्रारम्भ की गई थी। इनमें 57 असिस्टेंट प्रोफेसर, 52 एसोसिएट प्रोफेसर, 32 प्रोफेसर के पद सम्मिलित थे। उधर,
मानव संसाधन विभाग ने आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की है तो यूजीसी ने केन्द्रीय सहायता पाने वाली यूनिवर्सिटी को अध्यापक भर्ती बेमियादी तौर पर रोक देने को कहा है।
यूनिवर्सिटी के 2017-18 के आंतरिक आकलन के अनुसार अपने बजट के पाठ्यक्रमों के लिए अध्यापकों के 385 स्वीकृत पद हैं। सेल्फ फायनेंस योजना मेें १७९ पद हैं। सूत्रों के अनुसार यूनिवर्सिटी में कई साल से 363 फैकल्टी
सदस्य अनुबन्ध पर हैं। यूनिवर्सिटी को इन पदों पर नियमित भर्ती करने की जरूरत है। राज्य सरकार से वित्तीय मदद कम मिलने से केन्द्र से मदद की दरकार रहती है।
ढांचागत विकास और अनुसंधान गतिविधियां भी प्रारम्भ करने की प्रतीक्षा है। पिछले मार्च में यूजीसी ने ६२ संस्थानों को उच्च अकादमिक मानकों के लिए पूर्ण स्वायत्तता दी थी। फिर २६ मई को मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने यूनिवर्सिटी को ढांचागत विकास के लिए 100 करोड रूपए मंजूर किए थे। यूनिवर्सिटी पिछले कुछ साल से वित्तीय संकट में है। यूनिवर्सिटी ने केन्द्र को 162 करोड रूपए का मदद प्रस्ताव भेजा था। लेकिन मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने 100 करोड रूपए ही मंजूर किए।
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