कभी पिता की दवाई लाने के लिए चलाना पड़ा था रिक्शा, बाद में बने अरबपति, जाने कहानी

कुछ ही लोग होते हैं जो भाग्य से लड़कर भी जीत जाते हैं। हरिकिशन पिप्पल भी एक ऐसा ही नाम है, उन्होंने कभी रिक्शा चलाया था लेकिन आगे जाकर वह एक कामयाब बिजनेसमैन बने। हरिकिशन का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था। उनके पिता जूते बनाने का काम करते थे। जब वे 10वीं में थे तो उनके पिता की तबियत खराब हो गई। मजबूरन घर चलाने की जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई। वह घरवालों को बिना बताए शाम को चेहरे पर कपड़ा बांधकर साइकिल रिक्शा चलाने लगे। हरिकिशन ने आगरा की जैनसन पिस्टन में मजदूरी की।

अपनी शादी के बाद पत्नी की सलाह पर उन्होंने 1975 में पुश्तैनी व्यवसाय फिर से शुरू करने के लिए पंजाब नेशनल बैंक में लोन के लिए एप्लाई किया। लेकिन घरेलू परिस्थितियां ऐसी हो गई कि उन्हें एकबारगी लगा, बैंक लोन का पैसा इनमें ही खर्च हो जाएगा। ऐसे में उन्होंने घर छोड़ दिया और किराये पर एक कमरा लेकर उसमें कारखाना शुरू किया। फिर उन्हें सरकारी कंपनी स्टेट ट्रेडिंग कॉरपोरेशन से 10 हजार जोड़ी जूतों का ऑर्डर मिल गया।

हेरिक्सन नामक उनके जूतों का ब्रैंड फेमस हो गया। फिर उन्होंने बाटा के लिए भी नॉर्थ स्टार जूते बनाने का काम किया। हरिकिशन की कंपनी पीपल्स एक्सपोर्ट्स प्रा. लि. ने कामयाबी की राह पकड़ ली। हालांकि नई-नई चुनौतियां आती गई। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हुए राजनीतिक परिवर्तन का असर उनके व्यापार पर पड़ा। फिर उन्होंने अग्रवाल रेस्टोरेंट खोला। इसके बाद मैरिज हॉल भी शुरू कर दिया।

बाद में हरिकिशन के पास दो डॉक्टर आए और उन्होंने मैरिज हॉल की जमीन पर अस्पताल खोलने का प्रस्ताव दिया। उन्होंने कर्ज लेकर निवेश कर 2001 में उनके साथ हैरिटेज पीपल्स हॉस्पिटल शुरू किया। बाद में हरिकिशन को अहसास हुआ कि डॉक्टर उन्हें धोखा दे रहे हैं तो उन्होंने खुद ही हॉस्पिटल चलाने का निर्णय लिया। हालांकि लोगों की जातिवाद की सोच ने उनकी राह में रुकावटें खड़ी की, मगर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। बाद में उन्होंने राजनीति में भी अपना लक आजमाया।



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